AGNIVEER YOJNA,अग्निवीर शहीद अमृतपाल सिंह

AGNIVEER YOJNA,अग्निवीर शहीद अमृतपाल सिंह दोस्तों आज मेरे देश के सबसे कम उम्र 19 साल की उम्र में जम्मू कश्मीर में हुए देश का पहला अग्निवीर शहीद अमृतपाल सिंह की डेडबॉडी पार्थिव शरीर उसके मानसा के गांव कोटली कलां में लेकर आये ,2 फौजी वो भी सिविल ड्रेस ओर प्राइवेट एम्बुलेंस में छोड़ कर चले गए ।

जो मानसा जिले का गांव कोटली कलां के वासी हैं उन्होंने फ़ौजियों से पूछा के ये शहीद हुए है तो इसको मान सम्मान मिलना चाहिए । इस पर फौजी बोले सरकार की नई पॉलिसी के तहत अग्निवीर को शहीद का दर्जा नही मिल सकता । और ना ही सरकार इसको सलामी दे सकती हैं । फिर उसके बाद गाँव वालों ने SSP साहब से बात करके पुलिस से सलामी दिलवाई ।

Agniveer me sahid ka darja milta he ya nhi

इसीलिए एक्ससर्विस मैन अग्निवीर भर्ती का विरोध कर रहे है । अब आप इसको क्या समझ रहे हो । अगर आपको फौजी को शहीद का दर्जा दिलवाना हैं तो शेयर करें और सरकार के खिलाफ आवाज उठाएं

कितने अकेले बेटे शहीद हो गए,कितने सगाई करके गए और शादी के मंडप पर नहीं पहुंच पाएं!कितने शादी करके निकले और पहली शादी की सालगिरह पर लौट न सके!कोई बच्चा बाप का मुँह नहीं देख पाया!कोई पत्नी अपने भाई की शादी में पति के साथ न पहुंच सकी!कोई बहन शादी की पहली राखी भाई के लिए ले आने वाली थी लेकिन रोती-बिलखती पहुंची!

Kya agniveer me gard off oner milta he

यह दर्द उसी को मालूम है जो भुगतता है।माथे की सिंदूर उतर जाती है,हाथों के कंगन टूट जाते है,बहनो की राखियां राख हो जाती है,

amartpaal singh kha ka tha

भाई के कंधे टूट जाते है।गांव की गवाड़ी में उगे पीपल के पेड़ के नीचे बेटे के आगमन का इंतजार करती उस माँ का दर्द कोई नहीं समझ सकता जब अचानक पता चलता है कि बेटा नहीं रहा!

desh ka pehla saheed agniveer kon he

बाप पत्थर बन जाता है जब जवान बेटे की लाश को कंधा देता है।दुनियाँ का सबसे कठिन कार्य है बुजुर्ग बाप के कंधों पर जवान बेटे की लाश का होना।अग्निवीर योजना के तहत भर्ती जवानों को अब शहीद भी नहीं माना जायेगा।कफ़न पर तिरंगा भी नहीं होगा।

amartpaal singh ki death kaise huvi

सैन्य सम्मान के साथ अंतिम विदाई भी नहीं दी जाएगी।”जब तक सूरज चांद रहेगा,शहीद तेरा नाम रहेगा”जैसे नारे अब इतिहास बन गए है।आज अग्निवीर बनाकर छोड़ने तक राष्ट्रभक्ति समेटकर रख दी।यह दर्द जमाना गायेगा, इस दर्द को पीढियां लोककथाओं के रूप में याद रखेगी!इतना आसान नहीं है इस दर्द को भुलाना।??

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